शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे ।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ॥
भावार्थ :
शरत्काल में उत्पन्न कमल के समान मुखवाली और सब मनोरथों को देनेवाली शारदा सब सम्पत्तियों के साथ मेरे मुख में सदा निवास करें ।
सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् ।
भावार्थ :
वाणी की अधिष्ठात्री उन देवी सरस्वती को प्रणाम करता हूँ, जिनकी कृपा से मनुष्य देवता बन जाता है ।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं ।
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे ताम् परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥
भावार्थ :
जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ ।
पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्न: सरस्वती ।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ॥
भावार्थ :
बुद्धिरूपी सोने के लिए कसौटी के समान सरस्वती जी, जो केवल वचन से ही विद्धान् और मूर्खों की परीक्षा कर देती है, हमलोगों का पालन करें ।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ॥
भावार्थ :
हे महाभाग्यवती ज्ञानरूपा कमल के समान विशाल नेत्र वाली, ज्ञानदात्री सरस्वती ! मुझको विद्या दो, मैं आपको प्रणाम करता हूँ ।
सरस्वति नमौ नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम: ।
वेदवेदान्तवेदाङ्गविद्यास्थानेभ्य एव च ॥
भावार्थ :
सरस्वती को नित्य नमस्कार है, भद्रकाली को नमस्कार है और वेद, वेदान्त, वेदांग तथा विद्याओं के स्थानों को प्रणाम है ।
🌹👏🌹👏
No comments:
Post a Comment